के मीर वो कहते रहे सुखन छोड़ दो …
हम भी कहते रहे के फिर ग़ालिब क्या है …
एक मैं में मैं नहीं
तो फिर तू में तू क्या है ?
बोलता है ग़ालिब मिरे आईने में !
जी हाँ आज उस्ताद जी का जन्मदिन है …तो कुछ अपने तजुर्बे और उनकी नेकदिली जो हमपे मेहरबान हुई उसकी बात करते हैं ..
अक्स फरियादी है -ये जो तस्वीर आप देख रहें हैं – ये मैंने बनाई थी – हाँ मैं करीबन कुछ साल पहले मोम का फ्रेम बना रही थी जहाँ मैं पंख भी डालना चाहती थी – कुछ सूखे फूलों कि पंखुड़ी भी डाली थी शायद गुलाब की … कुछ रंग भी डाले थे मोम में .. उस आधे से फ्रेम में पंख फोकस पे होना था — पर कहते हैं न कि … अक्स फरियादी है मैं उस वक़्त न शेर समझने कि हैसियत रखती थी न ग़ालिब को बनाने की पर वो आ ही गए … अपना आशीर्वाद देने …. या मुझे दिख गए …..अब जो मान लो … मुझे उनकी वो जिंदादिली दिखी … न मुझे उर्दू आती है … न मैं उनकी तरह उर्दू का ज्ञान रखती हूँ पर उन्होंने मुझे बहोत ही खूबसूरत लब्ज़ जाने कहाँ से प्रेरणा में दिए हैं जिनके बारे में शायद उस वक़्त मुझे जियादा पता नहीं था या मैं उन्हें अपनी लेखनी में इस्तेमाल करने कि हिम्मत भी नहीं कर सकती थी. पर हैं न जादुई सी बात और गुरु की सौगात कि वो आये और मुझे सिखा गए
मोम के ही बुत में
आये तो सही
चाप अपनी हमारे लिए
छोड़े तो सही
ये पिघल के ही जमा हुआ है
ये जम के पिघलेगा
बोलता है ग़ालिब मिरे आईने में –
हाँ वो गीत बन कर आये गीत दे गए .. मैं गुनगुनाती रह गयी… 2012 की ये लौ …
आज भी मुझे विश्वास नहीं होता ये आया कैसे … इसका नाम मैंने तिरे साये में रखा था तब … पर सच कहूं तो बोलता है ग़ालिब जियादा पसंद आने लगा है …गा कर Soundcloud पे हिम्मत कर डाला था तब … आज हिम्मत नहीं पर उनकी सालगिरह पर उन्हीं को समर्पित है …
तिरे साये में!
(निकले थे बज़्म ऐ मौला … के तेरी आशनायीं में,
ये बेमियादी फुरकत …के जुर्ररत आफतायी में!)
के बोलता है ग़ालिब मिरे आईने में
के गफलत की शोखियाँ हैं तिरे साये में
सूखे मलबों के लावे उठा लाये लेकिन
चमके सितारे लगे हैं वो पत्थर तिरे साये में
तसव्वुर में ख्वाईश के दाने मिले हैं
वो मोती के माले बने हैं तिरे साये में
साफगोई से कहते हैं मिरा अक्स दे दो
ये बेहका शायर दिखे है तिरे साये में
तृप्ति