Nov 14, 2021
चाहतें….hmm hmmm राहतें
…दिन के पाँव में
मीठीं आहटें….
चाहतें….राहतें
…चाहतें….hmm hmmm राहतें
खाब के चाप की
महकी मुस्कुराहटें
चाहतें….राहतें
…चाहतें….hmm hmmm राहतें
भोर की करवटों में
शबनमी खिलखिलाहटें …
चाहतें….राहतें
…चाहतें….hmm hmmm राहतें
कुछ लौ का आना कलम लिए नहीं इंतज़ार करते हुए नहीं आता ..कम से कम मुझसे ये नाता नहीं है … हाँ अपनी बात कह ज़रूर कलम लिए हमें बिठा दिया जाता है… अब और क्या सुराग दूं …गवाह दूं अपने आस पास होने का … और जब यूँ ही उनकी गुनगुनाहट सी आती है कभी … धीमी सी लय लिए हुए … आप भी चौंकते नहीं … समझ जाते हो लो आ गए … कहाँ से आये … वैसे आने कि क्या ज़रुरत थी … थे तो अपने ही आस पास बस ….हमीं नहीं सुन पा रहे थे … अपनी ही चाल में आयेंगे ये तो पता था … एक मुखड़ा दे पूरा लिखवा जायेंगे ये भी पता था …लौ को एक बार जलना होता है वो कई और लौ साथ ले ही आता है …
तृप्ति
“साद कुछ ज़मीन पे छोड़ ही आओ
सुखन सादगी की छेड़ ही आओ
…. कुछ गुमशुदा सी है आप सी सूरत
कुछ कम बोलती है आपकी मूरत
थोड़ी सी झलक दिखा ही आओ
थोड़ी से और बोल दे ही आओ …..
लिख नहीं रहे क्या कलम तुम्हारे
या गुम कहीं हैं तुम्हारे इरादे
कुछ कलम से खेंच ही आओ
कुछ इरादों से मिल ही आओ …
इधर उधर में खो रहे हो
आप सा आप
कुछ खुद से मिल आओ
कुछ आप ले आओ ”
तृप्ति
“कहते हैं के दिल के फरेब पे बैठा है पागल,
वो आजमाईश ही क्या ….के जो नहीं हुआ घायल !
जो मुक्क़दस इक राह ऐसी मिले
हाँ फ़रिश्ता जो चाह का मिले !
ऐसी बंदिश जो आसमां से मिले
तो रुबाईयाँ भी रूह की मिले !
तृप्ति