किरण कुछ दिनों से मेट्रो ले रही थी. मेट्रो अपनी ही कहानियां ओढ़े कभी अंधेरों में कभी रौशनी में घूमता न जाने कितनों को कितनी ही मंजिलें पहुंचा रहा था… कुछ चुनिन्दा दिन ही थे हफ्ते के, पर वो सफ़र का वक़्त … जैसे कहानियों का होता … इतने चेहरे …कितनी सांसें कितनी जिंदगियां …कितनी ही बातें… कुछ हँसते कुछ हंसी … कुछ उम्मीद कुछ बेबस… कितने वाकये… कभी कभी तो कहीं देखने की ज़ुरूरत ही नहीं… आप सामना हो जाता था… उसने सोचा था वक़्त मिलेगा तो लिखेगी … पर कुछ बना नहीं …उसने बनाया नहीं…
फ़ोन तो होता था पर वो म्यूजिक नहीं सुनती थी… आस पास की गूँज अलग ही संगीत लिए होती थी… खैर … उसे यूँ चुप कुछ न समझ के भी उस भीड़ का हिस्सा होना अच्छा लगता था…
उसकी समझ के अपने नमूने होते थे और वो उसी से बढ़ती भी थी…
कुछ दिनों बाद उसे एहसास हुआ के जहाँ से वो चढ़ती थी और जहाँ वो उतरती थी … दोनों जगह गुरुद्वारा था.. ये जान कर बस अच्छा लगा था उसे…
सिलसिला कुछ महीनों चला …
कहाँ जाती थी… वो कुछ बच्चों को पढ़ाने जाती थी.
घर से जल्दी जल्दी निकलने में वो अक्सर कुछ फल बैग में डाल लेती पर शायद ही उसे भीड़ भरे रास्ते में खाने को मिलता…यूँ ही कभी केले कभी सेब…
उस रोज़ उस रास्ते कुछ भिखारियों की बढ़त सी लगी … पहले तो नहीं थे कब आये.. पर कोई नयी बात थी… उस रोज़ बहोत ही नन्हे बच्चों को लेटा देखा था… कुछ लोग दान दे रहे थे…फिर आगे को बढ़ी फिर वही नज़ारा ….चौंकी वो इस बारी… उसके हाथ बैग को गए फिर भी जैसे कोई रोक रहा था …उसने तो देना था .. उसके पास था…वो दे सकती थी… और जब वो मुड़ी ….तो सिर्फ इक आवाज़ के सहारे के आज शायद किसी और की ज़ुरूरत ख़ास है ..मुड़ी…क्या मुड़ना गलत नहीं था.. कुछ शंकित थी वो…क्यूँ.. उसने दिन से पूछना था…
खैर दिन जैसे आगे को बढ़ा वो भूल गयी. अपने क्लास को गयी …पढाना शुरू करना था… तभी शिखा…शीतल … मेहर की खबर लाये… क्या हुआ ..
आधी हंसी आधी परेशानी साफ़ करते हुए उन्होंने मेहर की सेहत की खबर दी ….. मेहर हॉस्टल में रहती थी और पेट ख़राब हो गया था…
कुछ देर बाद मेहर हांफते हुए …थोड़ी कसमसाती हुई क्लास में दाखिल हुई …
क्या हुआ मेहर ?
मैम वो…
पता नहीं कैसे किरण के मुंह से निकला …कोई बात नहीं …केला खाओगी… और झट से अपने बैग से दो केले निकाले और उसे दे दिया…
मेहर ने हिचकते हुए ले लिया… मेहर फिर दो घंटे की क्लास कर ले गयी …कोई तकलीफ नहीं हुई उसे…
और किरण …एक अजीब सी रोशन ख़ुशी मिली थी उसे …वो आवाज़ कितनी सच्ची थी …
मैम किरण ने आज कुछ सच्चे पाठ पढ़े थे…
तृप्ति 2015