गर हो उनसा हौसला … तो फिजाँ को नाज़ है
वो जो चल पड़े तो … तो खिलता है आसमां
जुबान गर आपके चुप में भी बोलती है .. तो समझिये के कुछ रह गया कहने को
ज़िन्दगी की इस भाग दौड़ में सुना काफी देखा काफी .. पर जो वो दिन भर समेंट से आये वो शायद कहीं अटका तलाशता है अपनी ही आज़ादी को…
कभी इसे अपनी कभी किसी और से आती मान बांचने की कोशिश करते हैं… कभी होती है कभी नहीं
ज़िन्दगी कई अनकही कहानियों का तानाबाना है..हम आगे चले जाते हैं और कहानियां छूट जातीं हैं .. या जब उनका सिर पैर न समझ आये तो एक अनुभव का नाम दे तसल्ली ले लेते हैं..
न कहानियां ही पूरी होती हैं न हमारी तसल्ली..
पर हाँ आईना देखते हैं और कहते हैं.. यार बड़ा छोटा दाएरा था तुम्हारा … इतने खूबसूरत लोग हैं यहाँ …
फिर जाने क्यूँ सिमट सी रही …
कुछ उनकी रौनके आयीं कुछ उनकी अमीरियत और हमें अपनी गरीबी पे होश आया
दयेरों में कैद खुद के आगे देखना मुश्किल है नामुमकिन नहीं
पर शायद जब जियादा समझ न आये तो कह देना के हाँ हैं यहाँ … थोड़ी अन्दर की खिड़कियाँ और खोलनी पड़ेंगी ..
पर सच भी यहीं हैं मन भी है जो है सो है.. जो नहीं है वो नहीं है … और जो … नासमझी है वो भी है …और जो समझ के भी किस भेद में छिपी है वो भी … पर आज एक अच्छी बात पढ़ी जो देमाग ने कई बार कही … जिंदगी जीते हैं शायद कुछ न समझना भी कभी कभी बहोत बड़ी समझ है…
“एक तरबियत है उनकी
वो रोज़ बोलते हैं
कहाँ से बोलते हैं किधर से बोलते हैं
हम उनको ढूंढते हैं…
ढूंढना शायद अब नहीं है…
पता तो नहीं पर शायद नापता सही है!
ये क्या कम है की
वो बोलते हैं…
और हम सुन लेते हैं!…
तृप्ति