आती तो है … पर वो बात नहीं
वो वक़्त बेवक्त सी चहलकदमी
फुसफुसा जाना
छेड़ना…
चुप सी थपकियों में सिमट
गुम जाती है कहीं
जाने क्या कहे और
झड़ी लग जाये..
आती तो है…
बुलाती भी नहीं
न खबर लेती हूँ
कहाँ खोयी हो पूछती तो हूँ
पर जवाब का इंतज़ार नहीं
आती तो है
घूम फिर जाती है
कुछ टटोलती
पीछे नहीं पड़ती
न खफा होती है
आती तो है…
शक्ल क्या बदल गयी
या छाप मेरी भूल गयी
क्यूँ नहीं है बांधती
क्यूँ नहीं ये रोकती
कब हंसी पलट जाये
इसलिए नहीं टोकती
आती तो है …
बात मेरी मान लो
गुफ्तगू को जान लो
बस यूँ ही सिफर सिफ़र
न कह मेरी सहर सहर
….आती तो है…
यूँ बूझने की बात
फिर करो तो आप
यूँ ठहर ठहर
शाद भी खिले जनाब
आती तो है…
थाम शायद लेंगे हाथ
उँगलियों के पोरों से
कोरी ज़मीनों पे
कुछ खेंच लेंगे ही
कुछ समेंट लेंगे ही …
आती तो है… आती रहेगी सदा…